राजेन्द्र गुढ़ा ने विधानसभा में लाल डायरी क्या लहराई कोहराम मच गया। राजस्थान से लेकर दिल्ली तक राजनीति शुरू हो गई।
राजस्थान में सियासत अपने चरम पर है। राजनीति की कालिख से तो सभी वाकिफ हैं। अभी तो चर्चा लालिमा की है। विधायक राजेन्द्र गुढ़ा ने विधानसभा में लाल डायरी क्या लहराई कोहराम मच गया। राजस्थान से लेकर दिल्ली तक राजनीति शुरू हो गई। मगर यक्ष प्रश्न यह है कि उस लाल डायरी में है क्या? इसका सटीक जवाब किसी के पास नहीं है।
गुढ़ा तो सार्वजनिक दावा कर रहे हैं कि उस डायरी में विधायकों की खरीद-फरोख्त और अन्य भ्रष्टाचार का हिसाब है। हालांकि गुढ़ा अब तक सिर्फ जुबानी जमा-खर्च ही कर रहे हैं, उन्होंने एक भी साक्ष्य सार्वजनिक नहीं किया है। सबसे खास बात यह है कि अब तक सरकार ने भी उनके इस दावे का पुरजोर खंडन नहीं किया। यहां तक की इस पूरे मामले की धुरी आरटीडीसी के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ भी चुप्पी साधे हुए हैं।
हालांकि राठौड़ ने देर रात बयान जारी करके स्वीकारा कि गुढ़ा कार्यवाही के दौरान मेरे घर आए थे लेकिन उसके बाद से लेकर आज तक उन्होंने मुझसे लाल डायरी के संबंध में कोई चर्चा नहीं की। राठौड़ ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया कि उनके घर से गुढ़ा कोई डायरी लेकर गए या नहीं। गुढ़ा तो यह भी दावा कर रहे हैं कि डायरी उठाने के दौरान साथी मंत्री रामलाल जाट भी साथ थे। रामलाल भी इस मामले पर मौन हैं। यहां तक की प्रर्वतन निदेशालय और आयकर विभाग ने भी अब तक गुढ़ा से वह लाल डायरी जब्त नहीं की, जो उनकी छापेमारी के दौरान वह उठाकर ले गए थे। क्योंकि यह मामला तो सीधे तौर पर केन्द्रीय एजेंसी की कार्यवाही के बीच भ्रष्टाचार के साक्ष्य मिटाने और महत्वपूर्ण दस्तावेज चुराने का है।
ईडी और आयकर विभाग ने भी गुढ़ा से वह डायरी बरामद करके भ्रष्टाचार के साक्ष्य जुटाने की पहल नहीं की। यह दोनों भी खामोश हैं। कुल मिलाकर न तो अब तक किसी ने लाल डायरी के वजूद को नकारा है और न ही किसी ने उसमें दर्ज कथित भ्रष्टाचार के हिसाब का खंडन किया है। बस सियासत अपने उफान पर है। यह समझने की जरूरत है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि लाल डायरी सियासत का केन्द्र बन गई। अब सियासत की इसी क्रोनोलॉजी अर्थात कालक्रम को समझने की जरूरत है। दरअसल पिछले साल 20 अगस्त को एनआरआई डॉ. बनवारीलाल मील की बेशकीमती जमीन पर हथियारों और लठैतों के दम पर कब्जा करने का प्रयास किया गया। पुलिस ने प्रकरण दर्ज किया, तो प्रारंभिक तौर पर ही गुढ़ा के निजी सचिव दीपेन्द्र सिंह का नाम सामने आ गया। पुलिस ने उसी समय दीपेन्द्र और अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इसी बीच 25 सितम्बर को कांग्रेस में फिर सत्ता संघर्ष छिड़ा।
विधायकों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत में आस्था व्यक्त करते हुए विधानसभा अध्यक्ष को सामूहिक इस्तीफे सौंप दिए। इसी बीच गुढ़ा ने अपना पाला बदल दिया। तब पहली बार गुढ़ा ने एक सार्वजनिक बयान में इस लाल डायरी का जिक्र किया। पिछले दिनों एनआरआई की जमीन कब्जाने के मामले के अनुसंधान में फिर तेजी आई है। अब सवाल यह है कि डायरी का अचानक प्रकटीकरण इस केस में आई तेजी से जुड़ा है अथवा सत्ता संघर्ष के समय हुई पाला बदली की वजह से गुढ़ा के बहाने निशाना कहीं और है। अब सत्ता और विपक्ष और उनसे भी ज्यादा केन्द्रीय एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि इस लाल डायरी के सच को जनता के सामने पेश करें। अधूरा सच हमेशा खतरनाक होता है। चुनावी साल है, जनता का हक है कि उसे पता हो कि आखिर जिस डायरी ने सियासत में भूचाल मचा रखा है, उसका सच क्या है। यदि भ्रष्टाचार हुआ है और उसके साक्ष्य भी मौजूद हैं तो उससे आमजन को रूबरू कराना चाहिए।