चीन, जापान और ताइवान पर अभी निर्भर हैं हम
चेन्नई. हाल ही केंद्र सरकार ने लैपटॉप, टैबलेट, ऑल-इन-वन पर्सनल कंप्यूटर, अल्ट्रा स्मॉल फॉर्म फैक्टर कंप्यूटर और सर्वर पर आयात प्रतिबंध लगा दिया है जो एक नवम्बर से लागू हो जाएगा। इस कदम से चीन जैसे देशों से आयात में कटौती की उम्मीद है। पहले से ही कोरोना एवं चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ बनते इलेक्ट्रोनिक्स बाजार का फायदा भारत को मिलता नजर आ रहा है। अब सरकार के हालिया प्रतिबंध के बाद मेक इन इंडिया की तर्ज पर भारत तेजी से इलेक्ट्रोनिक्स उत्पादों के निर्माण पर कब्जा जमाने को तैयार है। हालांकि कई कंपनियों के ज्यादातर उत्पाद चीन से ही भारत में आते हैं। केन्द्र सरकार के प्रतिबंध से ये कंपनियां भारत में प्रोडक्शन प्लांट लगाने के बारे में भी गंभीरता से विचार कर सकती हैं। यह कहना है चेन्नई इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फोटेक ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव राजू चंडालिया का।
प्रतिबंध चीन के लिए एक झटका
राजस्थान पत्रिका के साथ विशेष बातचीत में राजू चंडालिया ने कहा, इलेक्ट्रोनिक्स उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध चीन के लिए एक झटका भी माना जा सकता है, क्योंकि वहां का इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट बहुत बड़ा है और इस तरह के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बेचने वाली तमाम बड़ी कंपनियां चीन जैसे देशों से ही भारत में सप्लाई पहुंचाती हैं। उन्होंने कहा मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने यह प्रतिबंध लगाया है। गत अप्रेल से जून तक 19.7 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद आयात हुए हैं। इनमें लैपटॉप, टैबलेट, पीसी समेत अन्य प्रोडक्ट्स शामिल थे। इनमें ज्यादातर आयात चीन से ही होते हैं। भारतीय मैन्युफैक्चरर्स को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने यह सख्त कदम उठाया है।
भारत के पास जापान, चीन और ताइवान में बन रहे इलेक्ट्रोनिक्स उत्पाद और एसेसरीज जैसे प्रोडक्ट में ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनने का मौका है।
भारत की कई कंपनियां विदेशी कंपनियों के साथ कारोबार कर रही हैं जिनकी उपस्थिति ताइवान, इंडोनेशिया, मलेशिया, दुबई, सिंगापुर, वियतनाम, फिलीपींस सहित कई देशों में है। भारत में भी चीन की तरह इलेक्ट्रोनिक्स उत्पाद के कंपोनेंट का निर्माण और आरएंडडी शुरू हो रहा है लेकिन पूरी तरह उत्पादों के निर्माण में कम से कम पांच साल का समय लगेगा। एपल और दूसरी कंपनियों के कंपोनेंट का निर्माण भी जल्द शुरू होगा।