बलात्कार का झूठा मुकदमा : पोक्सो एक्ट में झूठा केस दर्ज कराया, छह माह की जेल

Aug 6, 2023 - 21:16

अजमेर बलात्कार का झूठा मुकदमा। अजमेर की कोर्ट का फैसला, 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया: पोक्सो कोर्ट (संख्या-1) के विशिष्ठ न्यायाधीश बन्नालाल जाट ने नाबालिग के जरिए बलात्कार का झूठा मुकदमा दर्ज कराने के मामले में पीड़िता की मां (परिवादिया) को 6 माह के कारावास व दस हजार रूपए जुर्माने से दण्डित किया है। पोक्सो मामले में किसी परिवादी को ही सजा का प्रदेश में यह संभवत: पहला मामला बताया जा रहा है। परिवादिया ने 11 जुलाई 2021 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि चारागाह में परिवार के साथ भेड-बकरियां चराने के लिए जंगल गई थी। दिन में लगभग 2 बजे जानवर चराते हुए सभी आगे निकल गए। पीड़िता की दादी पीछे रह गई। इसी दौरान आरोपी वहां आए और मुंह दबा कर पास में बबूल के पेड़ के पास ले जाकर नाबालिग पीडिता से दुष्कर्म किया।

पीड़िता के चिल्लाने पर उसकी दादी ने मौके पर पहुंचकर एक आरोपी को पकड़ने का प्रयास किया लेकिन दोनों आरोपी मौके से भाग गए। पुलिस ने पोक्सो कानून के तहत मामला दर्ज कर अनुसंधान किया।

पीड़िता बोली, मेरे साथ रेप नहीं हुआ

परिवादिया व पीड़िता के 161 सीआरपीसी के बयान हुए। पीड़िता ने बयान में कहा कि ’मेरे पिता पर चोरी का इल्जाम लगा रहे थे तब मैंने, मेरी मम्मी और दादी ने इन पर रिपोर्ट दर्ज लिखवा दी. . .मेरे साथ कुछ नहीं हुआ। रेप नहीं हुआ। कुछ भी नहीं हुआ’। पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 में अदालत में बयान कराए जाने पर कहा कि उसमें मेरे पापा के खिलाफ चोरी की झूठी रिपोर्ट करा दी थी तो हमने भी झूठी रिपोर्ट करा दी मेरे साथ कुछ गलत नहीं हुआ।

किसी कर्मी को अनिश्चित काल तक बाड़मेर-जैसलमेर में सेवा के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट

जोधपुर. हाईकोर्ट ने एक याचिका को स्वीकार करते हुए टिप्पणी की है कि किसी कर्मचारी को अनिश्चित काल तक जैसलमेर और बाड़मेर जैसे क्षेत्रों में सेवा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, यह काफी कठिन क्षेत्र है। न्यायाधीश दिनेश मेहता की एकल पीठ में याचिकाकर्ता राजेश की ओर से अधिवक्ता रामदेव पोटलिया ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिक्षक पद पर 2007 में जैसलमेर जिले में नियुक्ति हुई थी।

वर्ष 2018 के परिपत्र के अनुसार वह अपने गृह जिले झुंझुनूं में स्थानांतरण की पात्र है, क्योंकि उसकी नियुक्ति 2008 से पहले की है। याचिकाकर्ता लंबे अरसे से अपनी सास व बच्चों की देखभाल के लिए जैसलमेर से तबादले की मांग कर रही है, लेकिन उसकी मांग अनसुनी की जाती रही। इस बीच, उसके पति का भी निधन हो चुका है। राज्य की ओर से यह दलील दी गई कि चूंकि बाड़मेर-जैसलमेर प्रतिबंधित जिलों की श्रेणी में आते हैं, याचिकाकर्ता का अन्य मुक्त जिले में तबादला नहीं किया जा सकता। एकल पीठ ने कहा कि कुछ जिलों को प्रतिबंधित श्रेणी में रख काल्पनिक प्रतिबंधित क्षेत्र बनाने की कार्यवाही मनमानी और भेदभावपूर्ण है।