अमरीकी राष्ट्रपति 2024 के चुनाव अमरीकी की राजनीति को नया रुख दे सकती है विवेक की दावेदारी

Aug 21, 2023 - 10:48
Aug 21, 2023 - 11:01

US Presidential Election 2024: विवेक रामास्वामी रिपब्लिकन पार्टी की ओर झुक सकता है प्रवासी भारतीयों का वोट बैंक, जो आम तौर पर डेमोक्रेट्स का ही रहा है। मरीकी राष्ट्रपति चुनाव 2024 के लिए रिपब्लिकन व डेमोक्रेटिक दोनों ही पार्टियां सभी 50 राज्यों में ‘प्राइमरीज’ व ‘कॉकस’ के माध्यम से उम्मीदवारों का चयन कर रही हैं। एक ओर चलन के मुताबिक डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति बाइडन की उम्मीदवारी बेहद मजबूत है, वहीं रिपब्लिकन पार्टी से उम्मीदवारी की दौड़ में पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के वर्चस्व को अनेक चुनौतियां मिल रही हैं।

ट्रंप के विरुद्ध चल रही आपराधिक जांच के चलते ट्रंप के चुनाव लड़ने से वंचित होने की आशंकाओं के बीच रिपब्लिकन पार्टी से तेजी से उभर रहा एक नाम भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी का भी है। धीमी शुरुआत करने के बाद अब ‘डार्क हॉर्स’ की तरह लोकप्रियता में एकाएक उछाल पाकर विवेक पूर्व उप-राष्ट्रपति माइक पेंस सहित अनेक उम्मीदवारों को पीछे छोड़ फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डिसेंटिस के बाद तीसरे स्थान पर आ गए हैं।

इंजीनियर पिता व मनोचिकित्सक माता की संतान विवेक रामास्वामी इन्वेस्टमेंट बैंकर व एक बायोटेक कंपनी के मालिक हैं तथा अपने आक्रामक विचारों से तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। हिंदू होने को लेकर सवाल पूछे जाने पर वह कहते हैं द्ग ‘मैं वह दिखावा नहीं करूंगा जो मैं नहीं हूं। हां, मैं हिंदू हूं और मुझे अमरीका का कमांडर (राष्ट्रपति) बनना है, पॉस्टर इन चीफ (पोप) नहीं।’ ‘रियल-क्लियर-पॉलिटिक्स’ के आंकड़ों की मानें तो विवेक रामास्वामी ट्रंप और डिसेंटिस के बाद तीसरे स्थान पर आ रहे हैं और पूर्व उप-राष्ट्रपति माइक पेन्स व निक्की हेली को पछाड़ रहे हैं।

टीवी और डिजिटल मीडिया के माध्यम से रामास्वामी ने राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में अच्छी शोहरत हासिल कर ली है। रियल-क्लियर-पॉलिटिक्स के सर्वेक्षण में रामास्वामी को सतत् रूप से बढ़ता हुआ बताया गया है। इसके मुताबिक आज जहां रामास्वामी 6.1 प्रतिशत हासिल कर तीसरे स्थान पर हैं, वहीं एक महीने पहले यह आंकड़ा 3.1 प्रतिशत और 2 महीने पहले 2.2 प्रतिशत था।

डिजिटल मीडिया में रामास्वामी की इतनी लोकप्रियता प्रतीक है कि नौजवानों में उन्हें अधिक पसंद किया जा रहा है। अन्य सर्वेक्षणों में विवेक रामास्वामी को कहीं आगे दिखाया गया है। फॉक्स ने सर्वेक्षण में 11% के साथ रामास्वामी को न केवल बढ़ता हुआ दिखाया बल्कि पहले के मुकाबले ट्रंप और डिसेंटिस को पिछड़ता हुआ भी बताया। एमरसन कॉलेज के सर्वेक्षण में ट्रंप के ठीक बाद 10-10 प्रतिशत के साथ डिसेंटिस और रामास्वामी को एक साथ दूसरे स्थान पर बताए गए हैं। रामास्वामी के इतने आक्रामक व कामयाब कैम्पेन के बारे में एक धारणा यह भी बन रही है कि इस बार वह अगले चुनाव की दावेदारी मजबूत कर रहे हैं। यदि ऐसा है तो भी उनकी तैयारी से अमरीकी चुनाव पर असर को नकारा नहीं जा सकता।

ट्रंप के बाद रिपब्लिकन पार्टी में विवेक रामास्वामी ही ऐसे उमीदवार हैं जो असरदार तरीके से पार्टी विचारधारा को प्रचारित कर रहे हैं फिर चाहे गर्भपात का मुद्दा हो, मैक्सिको-यूएस बॉर्डर की दीवार का मुद्दा हो या चीन पर नीति का मुद्दा। रामास्वामी की प्रशंसा करते हुए ट्रंप कहते हैं द्ग ‘विवेक अच्छा कर रहे हैं।’ इससे यह संभावना भी जन्म ले सकती है कि ट्रंप यदि वापस रिपब्लिकन पार्टी से दावेदार बनने में सफल होते हैं तो विवेक रामास्वामी को अपना ‘रनिंग मेट’ घोषित कर डेमोक्रेट्स का प्रवासियों को लुभाने का प्रयास कमजोर कर दें और भारतीयों के वोट अनुपात को अपनी ओर झुका लें।

विवेक रामास्वामी राष्ट्रपति उम्मीदवार बन पाएं या न बन पाएं, पर उनका उदय डेमोक्रेट्स के लिए चिंता का विषय तो है क्योंकि भारतीय प्रवासियों का वोट बैंक आम तौर पर डेमोक्रेट्स का ही रहा है। हालांकि बॉबी जिंदल और निक्की हेली जैसे भारतीय प्रवासी पहले भी रिपब्लिकन पार्टी में ख़ुद को स्थापित कर चुके हैं, पर रामास्वामी का आक्रामक प्रचार-प्रसार उन्हें अलग साबित करता है। ब्रिटेन में भी हाल ही में देखा गया है कि कंजर्वेटिव पार्टी से पीएम बने ऋषि सुनक के उदय के साथ ब्रिटेन में भारतीय मतदाता लेबर पार्टी से खिसक कर कंजर्वेटिव पार्टी की ओर रुख करने लगा है। प्रवासी भारतीय चुनाव में धन जुटाने में भी आगे रहते हैं, जो अमरीकी चुनावों का एक और जरूरी पहलू है।

भारतीय प्रवासी अपने कौशल, उद्यम, निष्ठा व अनुशासन के बल पर दुनिया के सिरमौर देशों में भी महती राजनीतिक उपलब्धि हासिल कर रहे हैं। ऋषि सुनक ब्रिटेन के पीएम हैं तो अमरीका में भी कई राजनेता अपनी जगह बना रहे हैं। पिछली बार कमला हैरिस की तरह अब विवेक रामास्वामी की दावेदारी पर भारतीयों में उत्साह स्वाभाविक है, पर अमरीका एक प्रवासी भारतीय को अपने देश के प्रमुख के रूप में अपनाने को तैयार है या नहीं, यह तो समय ही बताएगा।