अन्वेषण ही नहीं, अब बस्ती बसाने की तैयारी चांद पर
बेंगलूरु. नासा के आर्टेमिस मिशन और मंगल पर उपनिवेशीकरण की तैयारी के चलते अगले कुछ वर्षों के दौरान चांद पर गतिविधियां तेज होंगी। फिलहाल चंद्रयान-3 को छोड़ कर छह मिशन चांद की कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं। भारत का चंद्रयान-3 भी 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। वहीं, अगले दो वर्षों में चंद्रमा पर कम से कम 10 मिशन भेजने की तैयारी है।
चंद्र कक्षा में छह मिशन लगा रहे चक्कर
- थेमिस सी (अमरीका)
- थेमिस बी (अमरीका)
- एलआरओ (अमरीका)
- कैप्सटोन (अमरीका)
- चंद्रयान-2 (भारत)
- केपीएलओ (कोरिया)
अब स्पेस में मलबे की समस्या: चांद पर बढ़ते उपग्रहों की संख्या भविष्य में एक नई चुनौती पेश करेगी। पृथ्वी की नजदीकी कक्षा में उपग्रहों और बेकार पड़े अंतरिक्षीय मलबे गंभीर चुनौती पेश कर रहे हैं। लेकिन, चंद्रमा पर उपग्रहों की बढ़ती संख्या के कारण उन्हें प्रबंधित करना बेहद मुश्किल होगा।
इसरो वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के काफी दूरी होने के कारण चांद की कक्षा में उपग्रहों और मलबों को ट्रैक करना काफी मुश्किल होता है। चांद की कक्षा में चंद्रयान-2 का आर्बिटर सितंबर 2019 से चक्कर लगा रहा है और दूसरे मिशनों से टकराव टालने के लिए तीन बार उसका मैनुवर हो चुका है।
वर्ष 2008 में भारत का भेजा गया चंद्रयान-1 मिशन और जापान का ऊना मिशन भी बेकार उपग्रह हैं जो चंद्र कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं। अब व्यावसायिक हो रहे मिशन
चंद्रमा और मंगल अभी तक सौरमंडल के दो ऐसे पिंड हैं, जिन पर सबसे अधिक मिशन भेजे गए। अभी तक इन मिशनों का उद्देश्य अन्वेषण करना था। लेकिन, अब भविष्य के मिशनों में इन पिंडों पर मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के व्यवसायिक उपयोग का उद्देश्य शामिल होने लगा है।