भुखमरी के बीच खाद्य सामग्री की बर्बादी क्यों?

Aug 17, 2023 - 12:14

सामयिक: तथ्य बताते हैं कि खाद्य पदार्थों की बर्बादी पिछड़े देशों की तुलना में विकसित देशों में काफी अधिक: संयुक्त राष्ट्र की हाल की एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2021 में पूरे विश्व में लगभग 81 करोड़ व्यक्तियों को पर्याप्त भोजन की प्राप्ति नहीं हो रही थी।

इनका पूरे विश्व की जनसंख्या में अनुपात लगभग 10 प्रतिशत था।  भारत में 2020 में अनुमान किया गया था कि उस समय 16.3 प्रतिशत व्यक्तियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा था। ये सभी भुखमरी से पीड़ित थे।

लेकिन विडम्बना यह है कि भुखमरी के इस दौर में भी खाद्य पदार्थों की क्षति तथा बर्बादी न केवल चल रही है, अपितु इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है।

कृषि उत्पादन की प्रक्रिया लगभग सभी विकासशील देशों में आज भी काफी सीमा तक प्रकृति पर निर्भर है। सूखा, अतिवृष्टि, तूफान आदि प्राकृतिक प्रकोप जहां फसलों को प्रभावित करते हैं, वहीं मानव-जन्य कारणों से भी खाद्यान्नों, फलों, सब्जियों आदि की बर्बादी का क्रम चल रहा है। जैसा कि स्पष्ट है, फसलों की क्षति काफी सीमा तक प्राकृतिक आपदाओं के कारण होती है।

 इसके अंतर्गत खेत में खड़ी हुई फसल को प्राकृतिक कारणों से नुकसान होता है। प्राय: इस प्रकार की ‘क्षति’ से कृषक को बचाने हेतु ‘फसल बीमा योजना’ का सहारा लिया जाता है। लेकिन भारत में अधिकांश कृषकों को प्राकृतिक कारणों से हुई क्षति की भरपाई नहीं हो पाती।

सूखा, अतिवृष्टि, तूफान या ओलों के कारण किसान की फसल किस सीमा तक क्षतिग्रस्त हुई, बीमा कंपनियां इसकी सही रूप में भरपाई नहीं करतीं, यह एक आम शिकायत है।

दूसरी ओर, खाद्य पदार्थों की बर्बादी आपूर्ति शृंखला (सप्लाई चेन) की खामियों के कारण होती है। फसल कटने के बाद कृषक उसे खुले मैदान में छोड़ दें जहां बारिश आने पर उपज आंशिक या पूर्ण रूप से नष्ट हो जाए तो यह बर्बादी हमारे सिस्टम की कमी के कारण है।

फसल की बर्बादी के अन्य कारणों में उपभोक्ताओं द्वारा खाद्य पदार्थों का अविवेकपूर्ण उपयोग, बहुत बड़े पैमाने पर प्रीतिभोजों का आयोजन आदि शामिल हैं। प्राय: सामाजिक व धार्मिक उस्तवों में बड़े पैमाने पर प्रीतिभोज आयोजित किए जाते हैं जहां जूठन भी बड़े स्तर पर छोड़ी जाती है।

एक अनुमान के अनुसार, 18 से 20 प्रतिशत खाद्य सामग्री इन कार्यक्रमों में बर्बाद होती है। इस प्रकार यह बर्बादी मानव की, यानी उपभोक्ता की अविवेकपूर्ण प्रवृत्तियों के कारण होती है।

उपलब्ध आंकड़े देखकर आश्चर्य होता है कि खाद्य पदार्थों की बर्बादी पिछड़े देशों की तुलना में विकसित देशों में काफी अधिक है, जबकि सामान्य रूप से यह माना जाता है कि इन देशों में शिक्षा का स्तर ऊंचा है, तथा उपभोक्ता भी विवेकशील है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021 में दस प्रमुख देशों में खाद्य पदार्थों की बर्बादी (हाउसहोल्ड फूड वेस्ट एस्टीमेट) के आंकड़े (ऊपर ग्राफ में) देखें तो चीन के बाद भारत इसमें दूसरे स्थान पर है।

आश्चर्य तो इस बात का है कि जहां एक ओर विश्व में गरीबी तथा भुखमरी व्याप्त है, वहीं समृद्ध व सम्पन्न देश करोड़ों टन खाद्य सामग्री बर्बाद होने से रोकने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं कर रहे हैं।

भारत में खाद्यान्नों की बर्बादी का एक बड़ा कारण भंडारण की अपर्याप्तता है। खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत भारतीय खाद्य निगम समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीद तो कर लेता है परन्तु कीडे़-मकौड़ों तथा चूहों से इसे सुरक्षित नहीं रख पाता।

अनेक बार तो बरसात के मौसम में अनाज की सुरक्षा नहीं हो पाती, तथा उपज का एक अंश खराब हो जाता है। यह शिकायत अनेक बार खाद्य निगम की भंडारण व्यवस्था को लेकर आती है, पर समाधान के लिए कोई विशेष कदम नहीं उठाए जाते। पारिवारिक स्तर पर अधिकांश परिवारों के पास अनाज को सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है। 

इसी प्रकार एक अनुमान के अनुसार 80 प्रतिशत सीमान्त तथा लघु कृषकों के पास न तो खेत के समीप और न ही घरों में भंडारण की व्यवस्था है। अनेक बार केंद्र व राज्य सरकारों को सुझाव दिए गए कि मनरेगा के अंतर्गत गांवों में सामुदायिक भंडारण की व्यवस्था की जाए लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

विश्व में फलों तथा सब्जियों के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है। लेकिन एक मोटे अनुमान के अनुसार, कोल्ड स्टोरेज की पर्याप्त व्यवस्था न होने से कुल फल-सब्जी उत्पाद का करीब 30-40 प्रतिशत हिस्सा बर्बाद हो जाता है।

हर साल कुल बर्बाद होने वाले खाद्यान्न का मूल्य करीब 50 हजार करोड़ रुपए होने का अनुमान है। भारत में वर्तमान में लगभग 6500 कोल्ड चेन वेयरहाउस हैं। आने वाले दशक में हमें इस क्षमता में भारी वृद्धि करने की जरूरत है, जिसके लिए सरकार व निजी क्षेत्र को भारी निवेश करना होगा। 

निष्कर्ष यही है कि देश में पर्याप्त खाद्य सामग्री (अनाज, दालें, फल व सब्जी) के उत्पादन के बावजूद जरूरत इसका विवेकपूर्ण उपयोग करने की है। इसके साथ ही देखना होगा कि जहां खाद्य सामग्री की बर्बादी अधिक है, वहां लोगों को जागरूक किया जाए।