Albert Einstein's brain History :दुनिया के सबसे बड़े जीनियस के ब्रेन में आखिर ऐसा है क्या? आइंस्टीन का दिमाग आम इन्सान के दिमाग से कैसे अलग था?

Aug 1, 2023 - 11:23
Aug 3, 2023 - 23:17
Albert Einstein's brain History :दुनिया के सबसे बड़े जीनियस के ब्रेन में आखिर ऐसा है क्या? आइंस्टीन का दिमाग आम इन्सान के दिमाग से कैसे अलग था?

Albert Einstein\'s brain History : ये बात तो हम सब जानते हैं कि आल्बर्ट आइन्स्टाइन  हिस्टरी का सबसे बड़ा जीनियस था। इतना जीनियस के वो अकेला ही हजारों साइअन्टिस्ट से ज्यादा दिमाग लड़ा सकता था। जो चीज़ हम इंसान समझना तो दूर की बात सोच भी नहीं सकते। वो आइंस्टाइन ने सोंची भी समझी भी और उसको पूरी दुनिया के लिए आसान भी बनाया।

ऐल्बर्ट आइंस्टाइन एक फिज़िसिस्ट थे, जिन्होंने थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी, इस ईक्वल्स टु एम सी स्क्वेर और फोटो इलेक्ट्रिक इफेक्ट के लॉस बनाकर पूरी दुनिया को हैरान और परेशान छोड़ दिया था और इसकी वजह से ही इनको नोबेल प्राइज से भी नवाजा गया। इनकी एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी सोचने और समझने की सलाहियत देखकर लोग समझते थे कि आइंस्टाइन के पास एक स्पेशल ब्रेन है जो हम आम इंसानों से काफी ज्यादा मुख्तलिफ है। इस बात का खुद आइंस्टाइन को भी अंदाजा था। इसी वजह से वो नहीं चाहते थे कि मरने के बाद इनकी बॉडी के किसी भी हिस्से पर रिसर्च की जाए। बल्कि उन्होंने तो ये इन्स्ट्रक्शन्स दे रखी थी कि मरने के बाद इनकी बॉडी को जलाकर राख कर दिया जाए।

लेकिन फिर वही हुआ जिसका आइंस्टाइन को डर था। 18 एप्रिल 1955 को प्रिन्स्टन हॉस्पिटल में जब आइंस्टाइन का इंतकाल हुआ तो ऑटोप्सी के लिए यानी मौत की वजह जानने के लिए जो डॉक्टर आया, उसने चुपके से आइंस्टाइन का ब्रेन निकाल लिया क्योंकि उसको ये जानने था  कि दुनिया के सबसे बड़े जीनियस के ब्रेन में आखिर ऐसा है क्या? 

आइंस्टाइन का ब्रेन चुराने वाले डॉक्टर थॉमस हार्वे  जिनको अपने साथ होने वाले अंजाम से ज्यादा इस स्पेशल ब्रेन को स्टडी करने में दिलचस्पी थी। कुछ दिनों के बाद जब प्रिंस्टन हॉस्पिटल को डॉक्टर हार्वी की इस हरकत का पता चला तो उनको अपनी जॉब से हाथ धोना पड़ा। लेकिन डॉक्टर हार्वे आइंस्टाइन के बेटे अल्बर्ट से जैसे तैसे करके ये परमिशन लेने में कामयाब हो गए कि वो उसके बाप के स्पेशल ब्रेन के अंदर छुपे राज़ से पर्दा उठा कर उसको दुनिया के सामने लाना चाहते हैं। इस दिन के बाद से शुरू हुआ इस ब्रेन का एक लंबा सफर। 

डॉक्टर हार्वी एक पैथोलॉजिस्ट थे जो सिर्फ पोस्टमॉर्टम करना जानते थे। यह उनका सिर्फ ख्याल था कि वो इतने बड़े जीनियस के ब्रेन पर रिसर्च कर पाएंगे। अब कंडीशन ये थी कि डॉक्टर हार्वी प्रिन्स्टन हॉस्पिटल की जॉब से भी हाथ धो बैठे थे और अपने पैथोलॉजिस्ट का ओहदा भी। आइंस्टाइन का ब्रेन जो पहले ही डॉक्टर हार्वी प्रिजर्व कर चूके थे, वो इसको लेकर पेन्सिलवेनिया के शहर फिलाडल्फिया ले गए, जहाँ उन्होंने ब्रेन की कई फोटोज ली और फिर उसको 240 छोटे छोटे पीस में काटकर हर्पीस को अलग मैं प्रिज़र्व करके अपनी बेसमेंट में छुपा दिया। 

इसी मसले को लेकर डॉक्टर हार्वी का अपनी बीवी के साथ कई बार झगड़ा होता रहता था क्योंकि उनकी बीवी अक्सर ये धमकी देती थी कि वो इस ब्रेन को उठाकर कहीं फेंक देगी। 1 दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों मियां बीवी को डिवोर्स लेकर अलग होना पड़ा और डॉक्टर हार्वे ब्रेन लेकर कैनसस के शहर विचिटा चले गए जहाँ वो एक बायोलॉजिकल टेस्टिंग लैब में मेडिकल सुपरवाइजर की नौकरी करने लगे और यहाँ वो अपने टाइम मैं आइंस्टाइन के ब्रेन पर खूब स्टडी करने की कोशिश करते हैं।

 इसके बाद कई बार वो अलग अलग जॉब छोड़कर मुख्तलिफ शहरों में ये ब्रेन लेकर घूमते रहे। कई साल गुजर चूके थे लेकिन डॉक्टर हार्वी आइंस्टाइन के ब्रेन पर कुछ खास रिसर्च ना कर सके, उल्टा उनका मेडिकल लाइसेंस ही कैंसिल कर दिया गया और नौबत यहाँ तक आ गई कि उनको एक प्लास्टिक की फैक्टरी में जॉब स्टार्ट करनी पड़ी। तभी उन्होंने पहली बार एक अच्छा फैसला किया कि वो इनके ब्रेन के अलग अलग हिस्सों को दुनिया भर के बेस्ट न्यूरो पैथोलॉजिस्ट के पास डिटेल्ड रिसर्च के लिए भेजेंगे।

लिहाजा उन्होंने ऐसा ही किया। 1955 में ब्रेन चोरी होने के 30 सालों के बाद यानी 1985 में पहली बार आइंस्टाइन के ब्रेन पर एक स्टडी पब्लिश की गई। इसके बाद अगले 28 सालों तक इस जीनियस प्रेम पर दुनिया भर के न्यूरो पैथोलॉजिस्ट ने कई स्टडीज़ पब्लिश की, जिनमें बताया गया कि आइंस्टाइन का ब्रेन आम इंसान के ब्रेन से काफी डिफरेंट था। सबसे बड़ा डिफरेन्स ब्रेन के कॉर्पोरेट किलो सोना मी हिस्से में पाया गया।

अब यहाँ ये जानना जरूरी है कि इंसानी ब्रेनदों अलग अलग हिस्सों में डिवाइड होता है। इंसान जो भी काम करता है वो ब्रेन के एक हिस्से में पहले प्रोसेसर होता है और फिर ब्रेन हमारे जिस्म के उस हिस्से को सिग्नल देता है। इसके अलावा 90% इंसानों का लेफ्ट ब्रेन बोलने समजने मेथ्मेदिकल कैल्कुलेशन्स और राइटिंग यानी लिखने के दौरान काम करता है, जबकि राइट ब्रेन के पास क्रिएटिविटी शेप्स को पहचानने आठ और म्यूसिकल स्किल्स की जिम्मेदारी होती है। अब आप भी ये सोच रहे होंगे कि इस सब में एक और कार्पस कैलोसम का क्या काम है? आप कीबोर्ड पर टाइपिंग कर रहे हैं या फिर मोबाइल फ़ोन पर। इस दौरान हमारे दोनों हाथ टाइपिंग करने में बीज़ी हैं। कुछ ऐल्फाबेट्स हमारा सीधा हाथ टाइप कर रहा है तो कुछ उल्टा हाथ।

टाइपिंग के दौरान आपके लेफ्ट हैंड से एक मिस्टेक हुई तो आप ने फौरन अपना राइट हैंड इस्तेमाल करके उस मिस्टेक को इरेज़ किया तो इसका मतलब यह हुआ कि जब हमारे राइट ब्रेन से मिस्टेक हुई,तो उसने लेफ्ट ब्रेन को  फ़ौरन सिंग्नल देकर वो मिस्टेक ठीक करवाई। ब्रेन के दोनों हिस्से आपस में जीस चीज़ के थ्रू कम्यूनिकेट करते हैं। उसको कार्पस कैलोसम कहा जाता है और आइंस्टाइन का कार्पस कैलोसम । हम आम इंसानों के मुकाबले में कुछ ज्यादा ही बड़ा था। यानी उनका लेफ्ट और राइट ब्रेन का आपस में बहुत स्ट्रॉन्ग कनेक्शन था, जिसकी वजह से आइंस्टाइन एक ही वक्त में काफी कॉम्प्लेक्स प्रॉब्लम्स और सिचुएशन्स को इमेजिन कर सकते थे।

कार्पस कैलोसम के बड़े होने के अलावा आइंस्टाइन के ब्रेन का पैटर्न भी आम इंसानों से काफी मुख्तलिफ था और रिसर्चर्स का मानना है कि इसकी वजह से ये ब्रेन में न्यूरॉन्स का फ्लो काफी बेहतर था। न्यूरॉन्स के अच्छे फ्लो होने का मतलब है कि इनकी मैथमैटिकल कैल्कुलेशन्स की पावर काफी ज्यादा स्ट्रांग थी। अल्बर्ट आइंस्टाइन कॉम्प्लेक्स मैथमैटिकल प्रॉब्लम्स को बगैर पेन और पेपर के अपने दिमाग की मदद से ही सॉल्व करने की काबिलियत रखते थे। न्यूरॉन्स ज्यादा होने की एक और वजह भी रिसर्च पेपर्स में बताई गई। जब आइंस्टाइन के ब्रेन का वजन किया गया तो उसका वजन 1230 ग्राम था।

 जबकि आम इंसानों का 1400 ग्राम होता है। रिसर्चर्स का मानना है कि इनके ब्रेन की लाइनिंग काफी पतली थी जिसकी वजह से इनमें ज्यादा न्यूरॉन्स पाए जाते थे। लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी वही था कि क्या आइंस्टाइन ऐसे स्पेशल ब्रेन के साथ पैदा हुए थे या इनके पैदा होने के बाद इसमें चेंजेस आयी? जांच के बाद मालूम पड़ा कि जब पैदा हुए थे तो वो पूरे पांच सालों तक बोल नहीं सकते थे, जबकि दूसरे बच्चे दो या 3 साल की उम्र में बोलना शुरू कर देते हैं।

 जब उन्होंने बोलना शुरू भी किया तब भी वो ज्यादा बोलना पसंद नहीं करते थे बल्कि हमेशा अपनी सोचो में ही गुम रहते थे। उनके पास चीजों को मेमो राइस करने की पावर काफी कम थी। यहाँ तक के उनको सिंपल मैच के टेबल भी याद करने में मुश्किल होती थी। वो मैथ्स और नंबर्स को लॉजिकल तरीकों से प्रोसेसेस करने के मास्टर थे, ना के उनको रट्टा लगाकर याद करने के। स्कूल लाइफ में बाकी हर सब्जेक्ट मे आइन्स्टाइन फेल होते थे। सिर्फ मैथ्स और साइंस वो वाहिद सब्जेक्ट्स थे।

जिसमे आइन्स्टाइन के नंबर सबसे ज्यादा आते थे। जब ऐल्बर्ट आइंस्टाइन 12 साल के थे, तब एक फैमिली टीचर अपनी जिओमेटरी की इनके पास भूल गए। हैरतअंगेज तौर पे सिर्फ एक ही दिन में आइंस्टाइन वो पूरी बुक पढ़ कर अपने जिओमेटरी के कॉन्सेप्ट क्लियर कर बैठे। ना सिर्फ इतना बल्कि सिर्फ 14 साल की उम्र में ही वो इंटीग्रल और डिफरेंशियल कैलकुलस के मास्टर बन चूके थे। मैथ्स और साइंस में इनकी इतनी स्ट्रांग ग्रिप थी कि जब वो क्लास रूम में कोई सवाल पूछने के लिए हाथ खड़ा करते थे।

 प्रोफेसर्स घबराने लगते थे क्योंकि आइंस्टाइन के अक्सर सवाल टीचर्स के भी ऊपर से गुजर जाते थे। छोटी सी उम्र में ही वो इस यूनिवर्स के लॉस को एक छोटी सी इक्वेशन में बंद करना चाहते थे और यहीं उन्होंने अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था। 26 साल की उम्र में आइंस्टाइन ने चार रिसर्च पेपर्स पब्लिश करके पूरी दुनिया को हैरान कर डाला और इसी वजह से उनको पीएचडी की डिग्री और ह्यूमैनिटी के लिए आला किरदार अदा करने की सूरत में नोबेल प्राइज से भी नवाजा गया।

 इसका अंदाजा आप सिर्फ इस बात से लगा लें कि आज भी आइंस्टाइन की  थीसिस के बिना साइनस बिल्कुल अधूरी है। कई डॉक्टर्स और साइंटिस्ट्स ने यह नतीजा निकाला कि आइंस्टाइन का ब्रेन उनके पैदा होने के बाद स्पेशल बना था, जिसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि जब उनको अपने सवालों का कोई जवाब नहीं मिलता था तो वो खुद अपने दिमाग की मदद से दबाब तलाश किया करते थे। छोटी उम्र में ही ऐसा करने से इनका ब्रेन उसी हिसाब से डेवलप होता गया। आज भी आइंस्टाइन का ये एक्स्ट्राऑर्डिनरी ब्रेन अमेरिका में Mütter Museum में मौजूद है जिसको बड़ी हिफाजत से माइक्रोस्कोपिक फिल्म्स में प्रिज़र्व करके रखा गया है।