पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच टकराव की एक वजह चीन

Aug 10, 2023 - 15:21
Aug 10, 2023 - 15:26
न तो अमरीका और न ही चीन की अफगानिस्तान को अस्थिर करने में कोई रुचि है, लेकिन चीन की नजर पाकिस्तान की खनिज संपदा पर टिकी है। मौजूदा स्थिति को यदि पाकिस्तान बदलने की कोशिश करता है तो समीकरण बदल सकते हैं।

आतंकवाद को पोषण देने वाले देश के रूप में हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान कुख्यात है। दुनिया में और भी ऐसे देश हैं जो आतंकवाद की न केवल बुवाई करते हैं बल्कि उसे खाद-बीज भी देते हैं। सही मायने में आतंकवादियों को संरक्षण देना इनका शगल ही बन गया है। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच आतंकवाद को लेकर जब वाकयुद्ध होता दिखता है तो यही लगता है कि जैसी फसल बोएंगे वैसी ही काटनी भी होगी। बहरहाल, आतंकवाद को पोषित करने के मुद्दे पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में खटास आने लगी है। यह खटास इसलिए और बढ़ी है क्योंकि पाक सेना की ओर से हाल ही दिए बयान में कहा गया है कि क्षेत्र में शांति और सुरक्षा की खातिर अफगानिस्तान को सीमापार से आतंकवाद को पनाह देने वाली गतिविधियां बंद करनी चाहिए। तालिबानी शासन ने तत्काल पलटवार करते हुए पाक को नसीहत दे डाली है कि पहले उसे अपना घर ठीक करना चाहिए।

दोनों देशों के बीच टकराव का असर समूचे दक्षिण एशिया पर होता दिख रहा है। पाकिस्तान कभी तालिबानियों का हमजोली था। वर्ष 2021 के अगस्त माह में पाकिस्तान ने ही इस ‘देशरक्षक सेना’ को फिर अफगानी सत्ता पर काबिज कराया था। अब आशंका यह जताई जा रही है कि पाकिस्तान भीतर तक हमला कर अफगानिस्तान को नुकसान पहुंचा सकता है। यह माना जाना चाहिए कि ऐसा हुआ तो अफगानिस्तान भी अपनी धरती और अवाम को बचाने का हर संभव प्रयास करेगा। दूसरी ओर एक तथ्य यह भी है कि पाकिस्तान में आतंकी हमलों से अपनी ही सेना और नागरिकों का बचाव मुश्किल हो रहा है। देश-विदेश में पाक की छवि को इससे नुकसान भी पहुंच रहा है। विशेषकर बलूचिस्तान के झोब में सैन्य चौकियों पर हमलों से पाकिस्तान परेशान है। इन हमलों में एक दर्जन से ज्यादा पाक सैनिक मारे गए हैं। इन हमलों की जिम्मेदारी अफगानिस्तान के इस्लामिक स्टेट से जुड़े इस्लामिक स्टेट खुरासान ने ली है।

पाकिस्तान का आरोप है कि बलूचिस्तान में झोब की सैन्य चौकी पर हमला कर पाक सैनिकों को मार डालने वाले आतंकियों को अफगान नागरिकों ने ही भड़काया था। पाकिस्तान, बलूचिस्तान में बड़ी मुश्किलों में फंस गया है। दरअसल, बलूचिस्तान प्रांत में बलूच लोगों ने पाक सरकार के खिलाफ बड़ा जन आंदोलन छेड़ा हुआ है। उनका आरोप है कि इस्लामाबाद की सरकार उनके प्राकृतिक संसाधनों को लूट रही है और उनके मौलिक अधिकारों को भी नकार रही है। बलूचिस्तान के लोगों में गुस्सा इसलिए भी है कि ग्वादर पोर्ट पर स्थानीय लोगों को मछली पकड़ने के उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है। पाक सरकार ने चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट के तहत ग्वादर पोर्ट का पूरा नियंत्रण चीन को सौंप दिया है।

बलूचिस्तान इसलिए भी नाखुश है कि सेना ने उसके सैकड़ों युवाओं को बिना उनके परिवारों को जानकारी दिए उठा लिया है और उन्हें लापता दिखा दिया है। पाकिस्तान के खिलाफ यह विद्रोह पाक सेना के लिए बड़ी सुरक्षा चुनौती बन गया है। बलूचिस्तान में चीनी नागरिकों और संपत्तियों की पुख्ता सुरक्षा की गारंटी देने में भी पाकिस्तान ने हाथ खींच लिए हैं। वहीं अफगानिस्तान के खनिज पदार्थों पर चीन की निगाहें हैं। चीन वहां तक अपनी बेल्ट रोड पहल को ले जाना चाहता है। हर तरफ से फंसने की आशंका की वजह से पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के खिलाफ धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने तालिबान शासित अफगानिस्तान को जो चुनौती दी है उसका संकेत यही है कि पाकिस्तान सीमा पार जाकर अफगानिस्तान में सैन्य अभियान चला सकता है। पाक की इस धमकी से पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता को लेकर भी नया संकट खड़ा हो सकता है।

दोनों देशों ने एक-दूसरे को जवाब देना शुरू कर दिया तो वैश्विक परिदृश्य में भी अलग तरह का बदलाव हो सकता है। न तो अमरीका की और न ही चीन की अफगानिस्तान को अस्थिर करने में कोई रुचि है। इसकी वजह यह है कि दोनों ही देशों के हित अफगानिस्तान की स्थिरता से जुड़े हैं। अमरीका नहीं चाहेगा कि अफगानिस्तान फिर आतंकियों के लिए पनाहगाह बने और यूएस या दुनिया में उसकी संपत्तियों पर हमले हों। चीन के अफगानिस्तान में आर्थिक हित हैं। वह कीमती खनिजों की खदानों पर निगाह रख रहा है। इतना तय है कि यदि पाकिस्तान मौजूदा व्यवस्था में खलल डालता है तो यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय ताकतों के लिए भी युद्ध क्षेत्र में तब्दील हो सकता है।