तख्तापलट का असर नाइजर तक नहीं दुनिया के दूसरे देशों में भी देखने को मिलेगा

Aug 19, 2023 - 23:34
अब नाइजर में आतंकियों के खिलाफ चल रही कार्रवाई भी प्रभावित होगी, जिसका असर दुनिया के दूसरे देशों पर भी पड़ सकता है नाइजर के लगातार बिगड़ते हालात को इन चार शब्दों में बयां किया जा सकता है-शर्मनाक, अनिष्टकारी, संकटपूर्ण और अंधकारमय भविष्य के संकेत देने वाले। शर्मनाक इसलिए, क्योंकि हाल ही वहां हुआ तख्तापलट बेखबर पश्चिमी जगत के लिए बड़ा धक्का है। न तो फ्रांस इसका अंदाजा लगा सका और न ही अमरीका को इसकी आहट सुनाई दी। अनिष्टकारी, इसलिए क्योंकि इसका फायदा रूस और चीन को मिलेगा। ये दोनों ही देश क्षेत्र और दुनिया में अपना दबदबा कायम करना चाहते हैं। संकटपूर्ण इसलिए क्योंकि इससे कट्टरपंथी आतंकवाद और अनियंत्रित प्रवासियों के खिलाफ जंग प्रभावित होगी। और अंधकारमय भविष्य की संभावना इसलिए कि हो सकता है, यह विश्व युद्ध को निमंत्रण दे दे।

नाइजर के तख्तापलट की चिंगारी इसलिए फूटी कि सेना के एक जनरल को खबर लगी कि उसे नौकरी से निकाला जा सकता है, तो उसने अपने शासक की सत्ता का ही तख्तापलट कर दिया, जिसकी रक्षा के लिए वह तैनात था। फ्रांस से मिली आजादी के बाद नाइजर में पांचवीं बार तख्ता पलट हुआ है, लेकिन इसका कारण न तो कोई विचारधारा है, न भूराजनीतिक, न भोजन संकट है और न ही कोई और बड़ा कारण। बस, एक कर्मचारी के कारण ऐसा हो गया। क्षेत्र में 2020 से अब तक और भी जगह राजनीतितक उथल-पुथल देखने को मिली है। जैसे माली, बुर्किना फासो और गिनी व सूडान में। अब अटलांटिक से लाल सागर तक अव्यवस्था फैली है। सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित शुष्क क्षेत्र सवाना धरती का नर्क बन चुके हैं।

गौरतलब है कि तख्तापलट को अंजाम देने वाले अब्दुर्रहमान उमर त्चिनी को राष्ट्रपति मुहम्मद बाजौम की रक्षा के लिए लगाया गया था। परंतु जैसे ही उसे भनक लगी कि बाजौम उसकी जगह किसी दूसरे को रखना चाहते हैं, तो उसने अपने सैनिकों के साथ बाजौम पर ही हमला कर दिया। वे अपने ऑफिस से निकल कर एक सुरक्षित कमरे में भागे। चारों ओर से घिरे बाजौम ने बाहरी दुनिया से मदद मांगी। वे वाशिंगटन पोस्ट को फोन पर एक ओप-एड लेख भी लिखवा रहे थे। अगर बुर्किना फासो और माली की सेनाओं के मार्गदर्शन में ऐसा हो रहा है, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि नाइजर में अब क्या होगा।

नाइजर जुंटा यानी सैन्य शासन वहां तैनात अमरीकी व फ्रांसीसी सेनाओं को बाहर निकाल फेंकेगा। साथ ही खुद को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और वैंगर गुट; रूस में भाड़े के सैनिकों की प्राइवेट सेना के नेता येवेगेनी प्रिगोझिन के हाथों में सौंप देगा। जिस समय यह घटनाक्रम चल रहा था, पुतिन सेंट पीटर्सबर्ग में अन्य अफ्रीकी नेताओं को इस बात के लिए मनाने में लगे थे कि वे यूक्रेन युद्ध पर उनका साथ दें। यदि साथ न दें, तो कम से कम विरोध तो न ही करें। उल्लेखनीय है कि इस दौरान ली गई फोटो में प्रिगोझिन भी दिखाई दे रहे हैं, जो आश्चर्य से कम नहीं है, क्योंकि जून में की गई बगावत के लिए उन्हें बेलारूस में निर्वासन की सजा दी गई है, तो उन्हें वहां होना चाहिए था। हो सकता है अफ्रीकी क्षेत्र सहेल में रुचि के चलते अब प्रिगोझिन को लेकर वे इतने चिंतित न हों। सहेल में पुतिन की रुचि जागने का कारण यही है कि यह क्षेत्र एक साथ कई तरीकों से पश्चिम को अस्थिर कर सकता है। यह आतंकवाद का वैश्विक केंद्र बन चुका है। यहां बोको हरम और इस्लामिक स्टेट की शाखाओं ने पैर पसार लिए हैं।

पश्चिम में अस्थिरता लाने के मकसद से ही पुतिन ने यूक्रेन से गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगा दी। मंशा यह थाी कि अफ्रीका जैसे देशों में भुखमरी फैले और लोग उत्तर व यूरोपीय संघ की ओर पलायन करें। पुतिन यूक्रेनी अनाज डिपो पर हमले जारी रखे हुए हैं। स्पष्ट है कि रूस विश्व खाद्य संकट के लिए जिम्मेदार है। नाइजीरियाई नेतृत्व वाले पश्चिमी अफ्रीका राज्य आर्थिक समुदाय ईकोवास ने नाइजर के साथ व्यापार पर रोक लगा दी है और उसे बिजली निर्यात पर भी रोक लगा दी है। इसके अलावा इसने जुंटा को भी चेतावनी दी है कि या तो वह बाजौम को सत्ता लौटाए या फिर सैन्य दखल का सामना करने के लिए तैयार रहे।

अमरीका और फ्रांस भी बाजौम के लिए हथियार उठाने से बचते नजर आ रहे हैं। उन्हें आशंका है कि नाइजर अगला इराक या अफगानिस्तान हो सकता है। पुतिन और शी जैसे राजनेताओं को समझना होगा कि हम पहले ही अगले विश्व युद्ध के बीच खड़े हैं, भले ही यह अघोषित है। अमरीका, यूरोप और पश्चिमी जगत को अफ्रीका का समर्थन करना चाहिए। ऐसा प्रयास करना होगा कि विश्व केवल जुंटा को ही आंखें न दिखाए, बल्कि भूराजनीति के नकारात्मक पक्ष का भी विरोध करे।