अफ्रीकी देश में बगावत से दुनिया परेशान। ECOWAS उस हालत में किस तरह के सैन्य दखल को अंजाम देगा, जब नाइजर में डिप्लोमसी फेल हो जाएगी।
नई दिल्ली: अफ्रीकी देश नाइजर की बगावत से दुनिया की ताकतें परेशान हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पड़ोसी देश माली के मिलिट्री लीडर्स से नाइजर के मसले पर वात की है। जिसके बाद वहां की सरकार ने बातचीत को लेकर नर्म रुख दिखाया है ।
इस बीच नाइजर में संभावित मिलिट्री दखल को लेकर घाना में पश्चिमी अफ्रीकी सेना प्रमुख ने बैठक भी की। अजेंडा है कि इकोनॉमिक वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स यानि ECOWAS उस हालत में किस तरह के सैन्य दखल को अंजाम देगा, जब नाइजर में डिप्लोमसी फेल हो जाएगी।
ग्रुप ने पहले कहा था कि नाइजर में संवैधानिक व्यवस्था बहाल करने के लिए हर कोशिश की जाएगी, जिसमें बल प्रयोग भी एक विकल्प हो सकता है। वागियों ने पश्चिमी देशों की उस मांग को खारिज कर दिया था जिसमें सत्ता से वेदखल राष्ट्रपति मोहम्मद जो की बहाली के लिए दवाव बनाया गया था। बागी सरकार ने कहा है कि वो जो पर राष्ट्रदोह का मुकदमा चलाएंगे।
रूस की प्राइवेट आर्मी वैगनर ने तख्तापलट का समर्थन किया है। इससे पश्चिमी देश सकते में हैं। इलाके में रूस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि पश्चि के पास बहुत ही कम वक्त बचा है कुछ भी करने के लिए। समझते हैं कि आखिर सारा घटनाक्रम कैसा रहा है।
नाइजर में आखिर हुआ क्या?
26 जुलाई को यहां के राष्ट्रपति की सरकार को एक तख्तापलट में हटा दिया गया। वेजौम साल 2021 में राष्ट्रपति बनाए गए। पहली बार था कि 1960 में फ्रांस से आजादी मिलने के बाद पहली बार सत्ता का लोकतांत्रिक ट्रांसफर हुआ था।
माली और बुर्किना फासो के बाद से इसे एक ऐसे व्यवस्था की तरह देखा जा रहा था जो कि पश्चिमी देशों की सहयोगी रही है। राष्ट्रपति वैजोम ने अमेरिका और फ्रांस के साथ मजबूत सुरक्षा साझेदारी बनाई।
आर्थिक बदहाली के अलावा लोगों को ये भी लगता था कि उनकी सरकार फ्रांसीसी सरकार पर कुछ ज्यादा निर्भर थी। साथ ही सालेह वाले क्षेत्र से आतंकवाद का खतरा तो था ही। पश्चिमी अफ्रीका का साहेल क्षेत्र वीते कुछ समय से जिहादी इस्लामिक उभार का शिकार रहा है।
पश्चिम के लिए नाइजर अहम क्यों?
साहेल के इलाके में नाइजर पश्चिमी देशों के लिए एक ऐसा एंट्री पॉइंट की तरह काम कर रहा था । यूरेनियम की वजह से भी नाइजर पश्चिम के लिए बेहद जरूरी है। यहीं से ये फ्रांस और यूरोपीय यूनियन को यूरेनियम जाता है। 26 जुलाई को हुआ था तख्तापलट । रूस के दखल से परेशान है पश्चिम
नाइजर के पीछे पश्चिम की इतनी रुचि के पीछे दो वजहें हैं। रूस दो तरफ से इस इलाके में पश्चिम के लिए मुसीबतें खड़ी कर रहा है। एक ओर जहां रूस ने रशिया-अफ्रीकी समिट में पश्चिमी देशों को निशाने पर लिया और अनाज डिप्लोमैसी कर इन देशों को अपने पाले में करने की कोशिश की।
वहीं, नाइजर के कू लीडर्स पश्चिम देशों की नहीं सुन रहे, लेकिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन की बात ध्यान से सुन रहे हैं। यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि वेस्ट अफ्रीका में रूस की प्राइवेट आर्मी गर का दबदबा बढ़ा है। यूरेनियम का भंडार होना भी बड़ी वजह है ।