यूसीसी लाना क्यों मुश्किल हुआ चुनाव से पहले

Aug 14, 2023 - 10:25

जनमानस तैयार करना बड़ीचुनौती? हालिया: मणिपुर हिंसा के कारण पूर्वोत्तर के मोर्चे पर सरकार को जूझना पड़ा और अतीत में 3 कृषि कानूनों पर फैले भ्रम के कारण आंदोलन की आंच से गुजरना पड़ा, ऐसे में इस मुद्दे पर सरकार कैसी भी जल्दबाजी के मूड में नहीं है। बड़े बदलाव के लिए समाज को तैयार किए करना सबसे बड़ी चुनौती है। यूसीसी से किस तरह से हर वर्ग को लाभ होगा, इसके बारे में जनता को अच्छी तरह बताना होगा। जनमानस तैयार किए बिना सरकार आगे बढ़ने से झिझक रही है।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में समान नागरिक संहिता(यूसीसी) के वादे के साथ सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने बचे हुए कार्यकाल में इसे धरातल पर उतारने से आखिर क्यों बच रही है। एक नजर...

आदिवासियों की नाराजगी भी वजह?

मेघालय सहित पूर्वोत्तर के कई राज्यों के आदिवासियों में विरोध के स्वर भी बड़ी वजह माने जा रहे हैं। आदिवासियों को लग रहा है कि यूसीसी लागू होने से उनके रीति-रिवाजों पर चोट पहुंचेगी। हालांकि, कहा जा रहा है कि यूसीसी से किसी वर्ग के रीति-रिवाजों पर असर नहीं पड़ेगा, सिर्फ सिविल कानूनों में एकरूपता आएगी। 3 जुलाई को भाजपा सांसद सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली संसदीय कमेटी की बैठक ने यूसीसी से आदिवासियों को कुछ रियायत दिए जाने की सिफारिश दी थी।

क्या चुनाव के आगे गौण हुआ यह मुद्दा ?

भाजपा रणनीतिकारों का मानना है कि 2024 के चुनाव में कम समय बचा है, ऐसे में बड़े मुद्दे को छेड़ने से नई तरह की मुसीबत खड़ी हो सकती है। 2024 में तीसरी बार सरकार बनने पर यूसीसी बेहतर तरीके से लागू करने के लिए सरकार के पास कहीं ज्यादा समय है।

केंद्र को उत्तराखंड मॉडल का क्यों हैं इंतजार?

उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार कराया है। राज्य के इसे लागू करते ही मामला कोर्ट में जाना तय है। केंद्र सरकार चाहती है कि उत्तराखंड के यूसीसी मॉडल पर कोर्ट का रुख साफ हो जाए, तब जाकर इस पर आगे बढ़ा जाए ताकि केंद्रस्तर से यूसीसी का जो मसौदा तैयार हो, उसकी राह में कोर्ट रोड़ा न बने।