चीन के आर्थिक उतार-चढ़ाव से डगमगा रहा विश्व अर्थ संतुलन

Aug 14, 2023 - 11:13

विश्व की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था में मांग कम, मुद्रा अवमूल्यन चिंताजनक: कोविड के साथ समाप्त हुए अमरीका के विकास के अध्याय के बीच दुनिया भर में बदले परिदृश्य को परिभाषित करने के लिए एक कथन प्रचलित होने लगा। माना जाने लगा कि दुनिया एक असामान्य समकालिक विस्तार की चोटी पर टिकी है। कुछ लोग तब भी अमरीका और चीन में कुछ दुर्लभ झटकों के बाद ऐसी आर्थिक बहाली की बातें कर रहे थे जिसमें रोजगार सृजन का कोई स्थान नहीं था और अमरीका और चीन की अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूती की ओर लौटते हुए देखा जा रहा था।

महंगाई खत्म हो रही थी जो कि एक अच्छा संकेत माना जा रहा था। जापान व यूरो क्षेत्र के हालात ठीक नजर आ रहे थे। यूरोप भारी ऋण संकट से उबरा ही था। इन सभी संकेतों का खूबसूरत पहलू यह था कि अमरीका के कंधों पर विश्व अर्थव्यवस्था को संभालने का बोझ आने वाले दिनों में कम होने वाला था, हालांकि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच व्यापारिक तनाव से हालात बहुत बिगड़े थे। न केवल अच्छे दिन आ गए थे, बल्कि कुछ समय के लिए वे ठहर भी गए थे। पर क्या अब दुनिया असंतुलन के चिंताजनक दौर से गुजर रही है?

मौजूदा तस्वीर हताश करने वाली है। बीते कुछ दशकों से व्यावसायिक गतिविधियों का स्रोत रहे चीन को उबरने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार, चीन की अर्थव्यवस्था में आई अस्थिर बहाली को नए झटके लगे हैं। निर्यात खत्म हो गया, आयात चिंताजनक रूप से घट गया और कई माह तक लगातार मुद्रास्फीति कम रहने के बाद जुलाई में उपभोक्ता कीमतों में एक साल पहले के स्तर से गिरावट दर्ज की गई। महंगाई में गिरावट अस्थायी रहने की संभावना है क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पिछले माह के मुकाबले बढ़ा है और मुख्य घटक यानी खाद्यान्न कीमतें बढ़ने का अनुमान है।

यह थोड़ी राहत की बात है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में मांग की चिंताजनक कमी देखी जा रही है। पर्याप्त नकारात्मकता भी है। लोग चीनी अर्थव्यवस्था में कमजोरी के संकेत तलाश रहे हैं, इसलिए सकारात्मक भविष्यवाणियां भी देर तक नहीं टिक पा रहीं। प्रॉपर्टी क्षेत्र में भी बुरा हाल है। बिक्री के लिहाज से कभी चीन का सबसे बड़ा बिल्डर रहा कंट्री गार्डन भी लड़खड़ा रहा है। समाधान चिर-परिचित हैं द्ग जैसे राजकोषीय मोर्चे पर अधिक प्रयास और ब्याज दरों में कमी लाना। चीन का केंद्रीय बैंक युआन पर मंदी के दांव के खिलाफ कदम उठा रहा है, पर सख्ती से नहीं।

चीन के हालात पर भविष्यवाणी करना भूल होगी। बड़ी अर्थव्यवस्थाएं उतार-चढ़ाव के चक्रों से गुजरती हैं और हमें चीनी अर्थवयवस्था के ऐसे और अधिक उतार-चढ़ाव देखने की आदत डाल लेनी चाहिए। इस बीच, दुनिया अमरीका के भरोसे है। कोरोना से पहले के दौर में यह देखना अच्छा था कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था का भार अमरीका ने अपने कंधों पर नहीं ले रखा था, पर क्या इसे गलत समझा जाए कि आज बदली हुई स्थितियां प्रभावी हैं?

मंदी हो या गतिहीनता, दोनों ही स्थितियां कोसों दूर नजर आती हैं। ज्यादातर समसामयिक विश्लेषणों के अनुसार अमरीका में निकट भविष्य में आर्थिक गिरावट की कोई आशंका नहीं है। जेपीमॉर्गन गत सप्ताह ही उस सूची में शामिल हो गया है जो यह मानते हैं कि आर्थिक गिरावट को टाला जा सकता है। श्रम बाजार मजबूत है, महंगाई अब भी फेडरल रिजर्व लक्ष्य से आगे चल रही है द्ग शायद चरम पर है। ऋण सीमा गतिरोध सुलझा लिए गए हैं। क्षेत्रीय बैंकों को लेकर चिंताएं दूर हो गई हैं। इसके बावजूद जेपीमॉर्गन ने मंदी की आशंका से इनकार नहीं किया है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार गिरावट का जोखिम अब भी काफी उच्च स्तर पर है। ऐसी विवेकशीलता में ही बुद्धिमानी है।

अमरीका के हालात में मामूली राहत को यदि जीत मान लिया जाए तो यह शर्मनाक होगा। 1990 में जब अमरीका में तकनीकी बूम आया था, तब बेरोजगारी कम थी और महंगाई काबू में। दशक के शुरू में जापान, जिसे अमरीका का मुख्य आर्थिक प्रतिद्वंद्वी माना जाता था, गिरावट का रुख करता पाया गया। अधिकांश पूर्वी एशियाई देश, जो तीव्र रूपांतरण के चलते ‘टाइगर्स’ कहे जाने लगे थे, वित्तीय संकट से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे थे।

चीन की त्वरित बढ़त जो अभी जोखिमपूर्ण नहीं थी, इस तस्वीर का बड़ा हिस्सा थी। इसके बावजूद मार्च 2001 तक अमरीका मंदी की चपेट में था। बड़ी यूरोपीय ताकतें और जापान में भी हालात विकट थे, जो तथाकथित गैर पारम्परिक मौद्रिक नीति की प्रयोगशाला बने हुए थे। महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि अर्थव्यवस्थाएं स्थिर नहीं रहती हैं। जश्न मनाने के बजाय चिंता होनी चाहिए दुनिया के उस हिस्से की जो आर्थिक सुस्ती की चपेट में है।

हाल ही बैंक ऑफ अमरीका ने अमरीका व चीन को लेकर संशोधित विकास अनुमान जारी किए - ये विपरीत दिशाओं में हैं। जो भी हो, विश्व अर्थव्यवस्था, जिसमें सब अपना-अपना राग अलाप रहे हैं, जोखिमों से भरी है। अमरीका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व एक बार फिर घटनाक्रम के केंद्र में है। चीन से उठने वाली निराशाओं के बावजूद इसका केंद्रीय बैंक निष्क्रिय है। मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर होने के चलते फेडरल रिजर्व 2018 और 2015 की तरह वैश्विक अर्थव्यवस्था के बारे में कोई संकेत नहीं दे रहा है। जाहिर है विश्व अर्थव्यवस्था पर नजर रखनी होगी, क्योंकि चीन के आर्थिक उतार-चढ़ाव दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं को भी हिला सकते हैं।